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प्रेम ब्रह्मांड जितना विशाल है

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प्रेम ब्रह्मांड जितना विशाल है "मुझे  तुम्हारी प्रतीक्षा  तमाम उम्र रहेगी मुझे तुमसे ही नहीं  तुम्हारे होने से भी प्रेम है.. ❣️" प्रेम ब्रह्मांड जितना विशाल है मेरी प्रीत आकाश और धरती से परे है जिसे मैं जताना चाहती हूं तुम पर मैं महाकाव्य रचना चाहती हूं तुमसे मेरे प्रेम का असीमित प्रेम है मेरा एक तुम्हारा नाम अनंत संभावनाएं रचता है गीतों और कविताओं में तुम्हें लिखने के लिए मैं इतना प्रेम लिखना चाहती हूं तुम्हारे लिए जितना संपूर्ण सृष्टि में किसी ने किसी से न कहा मैं तुम्हें एकांत में गाती हूं गुनगुनाती हूं तुम्हारे नाम को कितना सुंदर और प्यारा है एक शब्द  मेरे प्रियतम का नाम पर तुम पर निर्भर करता है मेरे प्रेम की परिधि मैं तुम हो या नहीं तुम्हें जब भी समेटना चाहती हूं शब्दों में एक नया काव्य रच जाती हूं मैं हृदय की देहरी को मैंने ऊंचा कर लिया जिसे सिर्फ तुम लांघ सकते हो मैं डूबना चाहती हूं तुम्हारे अमृत कलश में आज्ञा हो तो मैं भीतर तक सींच जाऊं तुम्हारी प्रेम और भक्ति में  जीवन के अंतिम पड़ाव पर राह देखती हूं तुम्हारे लिए तुम्हारे साथ..

कमाल-ए-ज़ब्त को ख़ुद भी तो आज़माऊँगी - परवीन शाकिर

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कमाल-ए-ज़ब्त को ख़ुद भी तो आज़माऊँगी कमाल-ए-ज़ब्त को ख़ुद भी तो आज़माऊँगी  मैं अपने हाथ से उस की दुल्हन सजाऊँगी  सुपुर्द कर के उसे चाँदनी के हाथों में  मैं अपने घर के अँधेरों को लौट आऊँगी  बदन के कर्ब को वो भी समझ न पाएगा  मैं दिल में रोऊँगी आँखों में मुस्कुराऊँगी  वो क्या गया कि रिफ़ाक़त के सारे लुत्फ़ गए  मैं किस से रूठ सकूँगी किसे मनाऊँगी  अब उस का फ़न तो किसी और से हुआ मंसूब  मैं किस की नज़्म अकेले में गुनगुनाऊँगी  वो एक रिश्ता-ए-बेनाम भी नहीं लेकिन  मैं अब भी उस के इशारों पे सर झुकाऊँगी  बिछा दिया था गुलाबों के साथ अपना वजूद  वो सो के उट्ठे तो ख़्वाबों की राख उठाऊँगी  समाअ'तों में घने जंगलों की साँसें हैं  मैं अब कभी तिरी आवाज़ सुन न पाऊँगी  जवाज़ ढूँड रहा था नई मोहब्बत का  वो कह रहा था कि मैं उस को भूल जाऊँगी           परवीन शाकिर

कहो तो तुम्हारे वचन भूल जाऊँ

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कहो तो तुम्हारे वचन भूल जाऊँ भटकता हुआ मन अटक सा गया है, कहो तो तुम्हारे वचन भूल जाऊँ ? यहाँ दूर तक फूल ही फूल बिखरे, यहाँ रातरानी अकेली खड़ी है, यहाँ खुशबुओं के हिमालय गड़े हैं, यहाँ की हवा में चमेली पड़ी है.. कली एक अठखेलियाँ कर रही है, कहो तो तुम्हारी छुअन भूल जाऊँ ?   यहाँ लोग तो खूबसूरत बहुत हैं, मगर क्या करूँ एक मेरा नहीं है, यहाँ चाँदनी साथ में रोज सोती, यहाँ दूर तक भी अँधेरा नहीं हैं...   यहाँ से सितारे बहुत पास दिखते, कहो तो तुम्हारे नयन भूल जाऊँ?

शोर करती हैं लहरें

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शोर करती हैं लहरें शोर करती हैं लहरें किनारों पर रातभर..  शोर सुनती हैं रातें फिर भी चुपचाप हैं.. बिखर जाते हैं कभी कभी किसी बात पर ...  मैंने कई बार फिर से समेटे मेरे ख़यालात हैं.. ज़मीन पर रुक नहीं पाते हैं कुछ देर तक फिर भी ...  हमें लगता है कि आसमाँ के परिंदे आज़ाद हैं ... वो जो तुझसे कहती है कि तू बहुत कुछ है ...  वो कोई और नहीं तेरे ही मन की आवाज़ है.. तो क्या हुआ जो फासले हो गए हमारे दरमियां...  मैं रहती हूँ जहां भी वो दिल में मेरे साथ है ... ज़माने से कहते फिरते हो कि सब खुशनुमा है...  क्यूँ अपने दिल में तुमने दबाए इतने जज़्बात है... शोर करती हैं लहरें किनारों पर रातभर ...  शोर सुनती हैं रातें फिर भी चुपचाप हैं..

मैं और मेरे अल्फाज

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  मैं और मेरे अल्फाज लिखें जाते हैं  कुछ अनकहे अल्फाज  जिसमें होतें है,  सबसे खूबसूरत अहसास। जो न बताए जाते हैं  न जताये जाते हैं  बस,  एकांत फुर्सत के पल में,  किसी कागज पर  उकेरे जातें हैं  कुछ दर्द  गम  खुशियों को,  सूकून के कलम से  अनकहे अल्फाज,  बड़ी शिद्दत से,  संवारे, संभाले जातें हैं..

अनजाने रिश्ते..

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अनजाने रिश्ते .. कभी खामोश  तो कभी  चुपचाप मुस्कुराते कभी अजनबी  तो कभी दिल के करीब लगते न कोई बंधन  न कोई अपेक्षा  नि:स्वार्थ समर्पित  कुछ अनकहे एहसास  कुछ खामोश जज़्बात  एक रुहानी अनुभूति  एक मासूम अभिव्यक्ति  एक आत्मीय सहेजते से अनजाने रिश्ते..

माना इक कमी सी है

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माना इक कमी सी है जो छूट गया उसका क्या मलाल करें, जो हासिल है,चल उस से ही सवाल करें !! बहुत दूर तक जाते है, याँदों के क़ाफ़िले, फिर क्यों पुरानी याँदो में सुबह से शाम करें । माना इक कमी सी है, जिंदगी थमीं सी हैं, पर क्यों दिल की धड़कनों को दर-किनार करें!! मिल ही जाएगा जीने का कोई नया बहाना, आ ज़रा इत्मीनान से किसी ख़ास का इंतज़ार करें !!